बलरामपुर, मई 25 -- पचपेड़वा, संवाददाता। विशुनपुर विश्राम गांव में थारूओं के उत्थान के लिए संचालित परियोजना बेअसर है। परियोजना पर रोजगार परक प्रशिक्षण की योजनाएं बंद पड़ी हैं। योजनाओं का संचालन सिर्फ कागजों में हो रहा है। बेरोजगारी की मार झेल रहे थारू छात्रों का कोई पुरसाहाल नहीं है। परियोजना परिसर स्थित अस्पताल में चिकित्सक तो हैं, लेकिन अन्य कर्मियों की कमी है। आदिवासी बाजार बंद पड़ा है। थारूओं के हाथों निर्मित उत्पाद नहीं बिक रहे हैं। महिलाओं व बेटियों को स्वावलंबी बनाने की परियोजना दम तोड़ रही है। परियोजना अधिकारी की कुर्सी वर्षों से खाली पड़ी है। उनका प्रभार जिला समाज कल्याण अधिकारी को सौंपा गया है जो यदा कदा ही परियोजना कार्यालय तक आते हैं। नेपाल सीमा पर थारू बाहुल्य गांवों की बहुलता है। थारुओं को अनुसूचित जनजाति का दर्जा मिला है। उनके उत...