फर्रुखाबाद कन्नौज, अप्रैल 30 -- शहर में करीब 40 साल पहले महाराष्ट्र और बंगाल से जो स्वर्ण कारीगर आए थे उनकी कारीगरी ने न सिर्फ यहां बल्कि देश के विभिन्न हिस्सों में अपनी चमक बिखेरने का काम किया। हाथों से बने उनके आभूषणों की मांग किसी समय पूरी नहीं हो पाती थी। अब तो हालात एकदम बदल गए हैं। मशीनीकरण के चक्कर में हाथों से बने आभूषणों की मांग न के बराकर रह गई है। ग्राहक भी फैंसी के चक्कर में फंसकर रह गए हैं। इस तरह से कारीगरी का पूरी तौर पर लोप होता जा रहा है। शहर में महज तीस फीसदी काम कारीगरों के पास बचा है। आपके अपने अखबार 'हिन्दुस्तान से नेहरू रेाड कटरा डौरूनाथ में चर्चा के दौरान संजय बंबइया कहने लगे कि तीन दशक पहले किसी भी कारीगर का हाथ खाली नहीं था। अब तो हालात बदल गए हैं। एक दशक से उनकी कारीगरी पर ही संकट आ गया है। कारीगर विजय बंबइया के ...
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