गंगापार, जून 23 -- 'मै जल रहा हूं और कोई देखता नहीं/ आखें हैं सबके पास मगर बेबसी है क्या... गीतकार इब्राहीम अश्क का यह शेर मुसहर समाज पर बिल्कुल सटीक बैठता है। गरीबी, अशिक्षा, बेरोजगारी तथा सामाजिक उपेक्षा का शिकार यह तबका बहुआयामी समस्याओं की लौ में वर्षों से तप रहा है, एक सुखद कल के सपनों की आस लिए जिंदगी के प्रति उसकी जिजीविषा को करीब से देखा और महसूस किया जा सकता है। दुनियां तरक्की के आसमां की चाहे जितनी ऊंचाइयां माप ले लेकिन खुशियां अभी भी इनसे बहुत दूर है। सच कहा जाए तो इनका जीवन आज भी अंधकारमय है। लोगों की छुआछूत और भेदभाव भरी कुंठित मानसिकता इनके प्रति कब बदलेगी, हमारे रहनुमा इनकी दुर्दशा से वाकिफ होते हुए कब तक मुंह मोड़ते रहेंगे, यह तो भविष्य की कोख में है। गंगापार के प्रतापपुर विकास खंड में यह हजारों की संख्या में रह रहे हैं, कु...
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