भागलपुर, सितम्बर 9 -- प्रस्तुति: अमित गोस्वामी रजनीश पूर्णिया की धरती, जो कभी अरण्य से चर्चित थी, आज वृक्षों की कमी से वीरान लगने लगी है। अंग्रेजों के जमाने में यहां घने जंगलों के कारण काले पानी की सजा काटने भेजा जाता था। उस दौर में नेशनल हाईवे के दोनों ओर घने पेड़ राहगीरों को ठंडक देते थे। पूर्णिया में जामुन, शीशम और खैर की लकड़ी प्रचुर मात्रा में मिलती थी, साथ ही बड़े-बड़े बट वृक्ष इसकी पहचान थे। लेकिन शहरी विकास की आंधी में ये वृक्ष कट गए और आज की स्थिति यह है कि शहर में बड़े पेड़ देखने को दुर्लभ हो गए हैं। वन विभाग और मनरेगा की योजनाओं में पौधरोपण का रिकॉर्ड जरूर है, लेकिन वास्तविकता यह है कि जमीन खाली पड़ी है। हरीतिमा का गौरव खो चुकी पूर्णिया को फिर हराभरा करने की आवश्यकता है। पूर्णिया जिले में पौधरोपण की कमी से पर्यावरण और जनजीवन दो...