धनबाद, मार्च 8 -- अपने पर होकर दयावान...तू करता अपने अश्रुपान, जब खड़ा मांगता दग्ध विश्व तेरे नयनों की सजल धार। तू एकाकी तो गुनहगार... हरिवंश राय बच्चन की ये कविता आज महिला दिवस पर और भी प्रासंगिक हो जाती है। आधुनिक दौर में एक महिला एक पूर्ण चक्र है। उसके भीतर सृजन, पोषण और परिवर्तन की असीम शक्ति है। यह शक्ति और भी प्रबल तब हो जाती है जब एक महिला घर की दहलीज से बाहर आकर खुद को कामकाजी महिलाओं के कतार में खड़ी करती है। वास्तव में कामकाजी महिलाएं ही महिला सशक्तीकरण की पर्यायवाची और पूरक हैं। अपने शहर में एक ठेले पर चाऊमीन बेचने से लेकर बड़े उद्योग की ऑनर तक ऐसे कई उदाहरण हैं जो महिला सशक्तीकरण की मिशाल पेश कर रही हैं। आपके अपने अखबार हिन्दुस्तान की टीम बोले धनबाद परिशिष्ट के लिए जब इन कामकाजी महिलाओं के बीच पहुंची तो उन्होंने बेबाकी से अपनी बा...
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