जौनपुर, मार्च 3 -- लकड़ी सिर्फ संसाधन नहीं, हमारी परंपरा और जीवनशैली का हिस्सा रही है। घर के दरवाजे-खिड़कियां, आलमारी और बक्सों तक। लकड़ी हमारी यादों में भी दर्ज रहती है। लेकिन अब प्लास्टिक, लोहे और स्टील के फर्नीचर ने इस परंपरा को दरकिनार कर दिया है। बढ़ई का पुश्तैनी धंधा सिमट चला है। काष्ठ शिल्पी दो वक्त की रोटी के लिए जूझ रहे हैं। जौनपुर की शेखपुर और नौपेड़वा लकड़ी मंडी के बढ़ई श्रम विभाग में पंजीकरण, आयुष्मान जैसी योजनाओं का लाभ, सरकारी महकमों की नजर-ए-इनायत चाहते हैं ताकि पेट तो भर सकें। शहर में शेखपुर और बक्शा क्षेत्र के नौपेड़वा बाजार की लकड़ी मंडी की दुकानों पर काम करने वाले कारीगरों (काष्ठ शिल्पियों) ने 'हिन्दुस्तान के साथ चर्चा में अपनी परेशानियों को सिलसिलेवार रखा। पुनवासी निषाद 15 साल से इस पेशे में हैं, लेकिन परिवार चलाना मुश...
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