जौनपुर, मार्च 26 -- 'गांव की सरकार के पास बजट नहीं होने से विकास ठप है। ग्राम प्रधान किंकर्तव्यविमूढ़ हैं। उन्हें उपाय नहीं सूझ रहा है कि वे काम करें कैसे? मनरेगा मजदूरों के पारिश्रमिक का भुगतान हो या फिर कोई और पेमेंट-सब 'पेंडिंग में है। काम न होने से परेशान जनता भी उन्हें घेरती है। उस वक्त वे उसके सवालों के जवाब नहीं दे पाते हैं। प्रधान कहते हैं-'बेशक, चुनौती बड़ी है फिर रास्ते हैं। बशर्ते, उन्हें विशेष बजट मिले। बक्शा ब्लॉक मुख्यालय पर जुटे ग्राम प्रधानों ने 'हिन्दुस्तान के साथ चर्चा के दौरान शासन-प्रशासन की कार्यशैली पर सवाल उठाया। यह बताने पर कि वे भी 'गांव की सरकार हैं...फिर कोफ्त किस बात की-उनका गुस्सा फूट पड़ता है। गंभीर आवाज में पूछते हैं-'क्यों न हो कोफ्त? हमें गांव की सरकार तो बता दिया गया लेकिन बजट और सुविधाएं कुछ नहीं...आखिर ...