भागलपुर, जून 28 -- प्रस्तुति: सेंटु कुमार जिन मेडिकल रिप्रजेंटेटिव्स (एमआर) की मेहनत के दम पर दवा कंपनियां तरक्की के शिखर पर पहुंच रही हैं, उन्हीं का जीवन बदहाली के गर्त में जा रहा है। दिन भर की भाग-दौड़ भरी जिंदगी और डॉक्टरों से मिलने की होड़ उन्हें मानसिक तनाव में धकेल रही है। मामूली वेतन पर काम करने वाले इन कर्मियों पर दिन-रात टारगेट पूरा करने का दबाव बना रहता है। अगर लक्ष्य पूरा नहीं हुआ तो वेतन में कटौती कर दी जाती है। आठ घंटे की जगह 15-15 घंटे तक काम लिया जाता है, लेकिन मेहनत के बदले सम्मान नहीं, बल्कि जीपीएस के जरिए निगरानी कर अपमानित किया जाता है। हिन्दुस्तान के बोले जमुई संवाद के दौरान एमआर ने कहा कि वे दवा का बैग कंधे पर लटकाए, बाइक से शहर की धूल फांकते रहते हैं। कई कंपनियां तो बीमा जैसी मूलभूत सुविधा तक नहीं देतीं। होटल का खर्च...