पूर्णिया, जून 27 -- प्रस्तुति : संजीव कुमार सिंह सेंटरिंग मजदूर निर्माण कार्य की रीढ़ माने जाते हैं। ये वही लोग हैं, जो लोहे की छड़ों और भारी पटरियों के बीच दिन-रात पसीना बहाकर मकानों की नींव से लेकर छत तक खड़ी करते हैं। लेकिन विडंबना यह है कि उनकी अपनी जिंदगी बेहद कमजोर बुनियाद पर टिकी होती है। न उनके पास श्रम कार्ड है, न स्वास्थ्य सुरक्षा और न ही स्थायी आय का कोई ठोस जरिया। इनमें से अधिकांश मजदूर अनपढ़ या कम शिक्षित होते हैं, जिन्हें सरकारी योजनाओं की जानकारी नहीं होती। ऊपर से बिचौलियों की लूट, सरकारी तंत्र की अनदेखी और जागरूकता की भारी कमी ने उन्हें समाज के हाशिए पर ला खड़ा किया है। उनके बच्चे भी शिक्षा के क्षेत्र में पिछड़ते जा रहे हैं। हिन्दुस्तान के बोले जमुई संवाद के दौरान मजदूरों ने कहा कि सरकार की योजनाएं केवल कागज तक सीमित रह जा...
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