कुशीनगर, मार्च 18 -- Kushinagar News : मिट्टी के बर्तन एक वस्तु ही नहीं, हमारी संस्कृति, परंपरा, त्योहार, पूजा-पाठ, कर्मकांड के आवश्यक अंग हैं लेकिन माटीजीवी कारीगर अर्थात् कुम्भकार या कुम्हार बदलते दौर की मार झेल रहे हैं। एक तो न मिट्टी मिल रही है न ही अनुकूल बाजार। उस पर आधुनिकता और बढ़ती प्लास्टिक संस्कृति के कारण उनका परंपरागत व्यवसाय संकट में है। कभी समृद्ध रही यह कला आज अस्तित्व बचाने की लड़ाई लड़ रही है और इसके सहारे आजीविका चलाने वाले जद्दोजहद कर रहे हैं। 'हिन्दुस्तान' से बातचीत में माटी कला से जुड़े कुम्हार समाज के लोगों ने अपनी समस्याएं बयां कीं। Kushinagar News: कुशीनगर जिले में कुम्हार समाज के लोगों की आबादी दो लाख से अधिक है। इसमें से 60 फीसदी परिवार आज भी माटी कला से जुड़े हैं। कुम्हारों का काम सदियों से भारतीय संस्कृति का ह...
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