आगरा, मई 29 -- धूप हो या ठंड हमेशा खुले आसमान के नीचे आपको ये लोग भट्ठों पर ईंट पाथने का काम करते हुए मिल जाएंगे। वहीं बरसात का मौसम आने पर काम बंद होने की वजह से इनके हाथ खाली रहते हैं। इन्हें मेहनताना भी ठेके के हिसाब से मिलता है। निरक्षरता की बेड़ियों में जकड़े होने की वजह से यह लोग कोई और काम भी नहीं कर पाते। सरकार के पास इनके लिए योजनाएं तो तमाम हैं, लेकिन उनका लाभ सभी श्रमिक नहीं उठा पाते हैं। यह लोग मिट्टी को गूंथने के बाद सांचे में ढाल कर, कच्ची ईंट तैयार करते हैं। इनका जीवन भी उन्हीं कच्ची ईंटों की तरह ही बनते-बिगड़ते रहता है। आपके अपने दैनिक समाचार पत्र हिन्दुस्तान ने बोले कासगंज के तहत भट्टा मजदूरों की व्यथा को जाना। मजदूरों ने बताया कि हम श्रमिकों को काम भी ठेकेदार के माध्यम से ही मिल पाता है। वही हमारी मजदूरी का लेखाजोखा रखते है...
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