वाराणसी, अगस्त 26 -- वाराणसी। देश-समाज के विकास में प्रज्ञाचक्षुओं के योगदान को नकारा नहीं जा सकता। ऐसे लोग आज कहीं शिक्षक हैं तो किसी विभाग में कर्मचारी के रूप में सेवाएं दे रहे हैं। ये लोग लौकिक रूप से तो देख नहीं पाते, लेकिन 'मन की आंखों के जरिए अपनी संवेदनाएं जताते हैं, शब्दों से उन्हें प्रकट भी करते हैं। ऐसे लोगों की अपेक्षाएं हैं कि उनके लिए स्वतंत्र ब्रेल लाइब्रेरी, हॉस्टल और कंप्यूटर प्रशिक्षण की सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएं, जिससे वे खुद को 'अपडेट कर सकें और समाज को 'उज्ज्वल बना सकें। संसार को अपनी आंखों से न देख पाने की कसक के बीच प्रज्ञा चक्षुओं का जोश और जज्बा 'प्रणाम योग्य है। वे कहते हैं कि हमें किसी के रहम और सहानुभूति की जरूरत नहीं है, लेकिन सभी का सहयोग तो मिलना ही चाहिए। क्योंकि यह सहयोग हमारे लिए 'दृष्टि बन जाता है। उसकी ब...