भागलपुर, सितम्बर 7 -- प्रस्तुति: ओमप्रकाश अम्बुज/ मोना कश्यप संकट की घड़ी हो या सड़क हादसा, सबसे पहले याद आता है नंबर 112। एक कॉल पर डायल-112 की गाड़ी तुरंत मौके पर पहुंचती है- कभी घायल को अस्पताल ले जाने, कभी महिला की सुरक्षा सुनिश्चित करने तो कभी आग से जूझती जिंदगी बचाने। लेकिन विडंबना यह है कि जो चालक चौबीसों घंटे दूसरों को बचाने में तत्पर रहते हैं, वही आज अपनी जिंदगी और रोजगार की सुरक्षा को लेकर असहाय हैं। समाज और व्यवस्था के लिए जीवनरक्षक बने ये नायक अब खुद असुरक्षा और अनदेखी के शिकार हो रहे हैं। दूसरों की मदद करने वाले इन कर्मवीरों की पुकार आज अपने हक और सुरक्षा की मांग है। जिससे यह समाज में और मजबूती से अपनी सेवा दे सकें। महज एक कॉल पर पुलिस, एंबुलेंस, फायर ब्रिगेड और महिला सुरक्षा दल घटनास्थल पर पहुंच जाते हैं। पिछले तीन वर्षों मे...
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