भागलपुर, नवम्बर 21 -- - प्रस्तुति : ओमप्रकाश अम्बुज/मुदस्सिर नजर कटिहार के बारसोई प्रखंड की सीमा पर बसे गांव हर साल सिर्फ बाढ़ नहीं झेलते-वे अपनी आधी ज़िंदगी बहते पानी में और बाकी आधी टूटी उम्मीदों में गुजारते हैं। सड़कें गड्ढों में समा गई हैं, अस्पतालों में डॉक्टर ग़ायब हैं, बिजली आंख-मिचौली खेलती है और स्कूलों में पढ़ाई से ज़्यादा इंतज़ार मिलता है। खेती तबाह, रोजगार खत्म... और घर बचाने के लिए हर साल हजारों लोग गांव छोड़ने को मजबूर। सरकारी योजनाएं कागज़ों पर चमकती हैं, लेकिन जमीनी हकीकत में अंधेरा ही अंधेरा। यहां की त्रासदी आपदाओं की नहीं-उपेक्षा, मजबूरी और अंतहीन संघर्ष की कहानी है। कटिहार जिले का बारसोई अनुमंडल जहां बिहार-बंगाल की सीमा मिलती है। वहां ज़िंदगी किसी संघर्ष का नाम नहीं, बल्कि रोज़ बहने वाली मौन त्रासदी है। नलसर, चापाखोर, ह...