भागलपुर, सितम्बर 11 -- प्रस्तुति: ओमप्रकाश अम्बुज/मुदस्सिर नजर महानंदा नदी का नाम सुनते ही कटिहारवासियों की आंखों में डर और दर्द दोनों समा जाते हैं। यह नदी वर्षों से अनगिनत जिंदगियों और सपनों को बहा ले चुकी है। हर साल बारसोई, प्राणपुर और अमदाबाद के हजारों लोग महानंदा की बाढ़ की त्रासदी झेलने को मजबूर होते हैं। पिछले तीन दशकों में कई गांव इस नदी के गर्भ में समा गए हैं, जिनका नाम अब केवल बुजुर्गों की यादों में शेष रहा है। तटबंधों के किनारे झोपड़ियों में रहने वाले विस्थापित परिवार आज भी अपने उजड़े घरों, खोई जमीनों और बिखरे सपनों की पीड़ा के साथ जीवन संघर्ष कर रहे हैं। महानंदा की बाढ़ ने इन गांवों की आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक समृद्धि पर गहरा आघात किया हैै। महानंदा नदी का नाम सुनते ही सीमांचल के लोगों की आंखों में दर्द और डर दोनों समा जाते ह...