कटिहार, जून 17 -- प्रस्तुति: ओमप्रकाश अम्बुज, आशीष कुमार सिंह गंगा के किनारे पला-बढ़ा एक समाज-गंगोता-जिसकी सांसों में नदी की लहरें बसी हैं, आज खुद पहचान की तलाश में भटक रहा है। कटिहार के फलका जैसे इलाकों में जहां कभी इनकी नावें चलती थीं, अब वहां टूटे सपनों और उजड़े घरों की कहानियां बह रही हैं। पीढ़ियों से घाटों की सेवा करने वाला यह समाज आज बिना ज़मीन, बिना सम्मान और बिना हक के जी रहा है। बच्चों के हाथ में कलम की जगह अब भी जाल है, और बुजुर्गों की आंखों में उम्मीद की जगह एक ठहरी हुई उदासी। गंगोता समाज की यह चुप्पी अब टूटी जानी चाहिए। कटिहार जिले के फलका प्रखंड में गंगोता समाज आज भी विकास के दरवाज़े से बाहर खड़ा है-सदियों से गंगा के घाटों पर अपना जीवन खपा देने वाला यह समाज आज खुद बेसहारा, बेघर और बेआवाज़ बना बैठा है। खेरिया, बरेटा, दलवा, भंग...
Click here to read full article from source
To read the full article or to get the complete feed from this publication, please
Contact Us.