भागलपुर, जून 22 -- प्रस्तुति: ओमप्रकाश अम्बुज, आशीष कुमार सिंह धूप में झुलसी पीठ, पसीने से भीगा कुर्ता और आंखों में एक बेजान-सी उम्मीद लिए खड़ा है कटिहार का किसान। उसने वक्त पर हल चलाया, आसमान की ओर देखा, लेकिन न बीज मिला, न भरोसा। अब जब खेत प्यासा है, तब व्यवस्था बीज दे रही है। हर साल की तरह इस बार भी उसने उम्मीद बोई और तन्हा मायूसी काट रहा है। जब खेत में हल चला, तब बीज नहीं था। अब बीज आया है, तो खेत सूख रहा है। सरकार का समय किसान के समय से कभी नहीं मिलता...। धान की बुआई का आदर्श समय रोहिणी नक्षत्र बीत चुका है। कटिहार का किसान फिर एक बार सरकारी व्यवस्थाओं की लाचारी के सामने हारता नजर आ रहा है। बारिश रुक-रुककर हो रही है और खेती की शुरुआत में ही किसान पटवन के लिए डीजल पंप का सहारा ले रहे हैं। महंगे डीजल और घटती आमदनी के बीच किसान आर्थिक रू...