भागलपुर, सितम्बर 14 -- फलका के किसानों की ओमप्रकाश अम्बुज, आशीष कुमार सिंह कटिहार के फलका प्रखंड की नहरें आज किसानों की पीड़ा और टूटे सपनों की गवाही दे रही हैं। कभी इन नहरों से बहता पानी खेतों को लहलहाता था, पर 1987 की प्रलयंकारी बाढ़ ने खुशहाली की वह धारा हमेशा के लिए रोक दी। तीन दशक बाद भी किसान अब भी उसी इंतजार में हैं कि शायद फिर खेतों में पानी बहेगा और उनकी किसानी जिंदा होगी। सूखी नहरें अब किसानों के आंसू और उनकी मजबूरी का आईना बन चुकी हैं। फलका प्रखंड की धरती कभी लहलहाते खेतों और भरपूर फसल की वजह से जानी जाती थी। यहां की गर्मा धान की खुशबू और गेहूं, दलहन-तेलहन की हरियाली किसान परिवारों की खुशहाली की पहचान हुआ करती थी। मगर आज वही खेत प्यासे हैं, वही किसान मायूस हैं और वही नहरें, जिनसे कभी उम्मीदों का पानी बहता था, अब सूनी और खंडहर बन...
Click here to read full article from source
To read the full article or to get the complete feed from this publication, please
Contact Us.