भागलपुर, जून 11 -- प्रस्तुति: ओमप्रकाश अंबुज, मोना कश्यप कटिहार की बेटियों की आंखों में अब सपने हैं-आसमान छूने के, आगे बढ़ने के। उन्होंने पढ़ाई, खेल और प्रतियोगिता में झंडे गाड़ दिए हैं, मगर दिल में एक डर अब भी ज़िंदा है-सुरक्षित नहीं हैं रास्ते। हर शाम उनके लिए चिंता बन जाती है। अंधेरी गलियों, छेड़छाड़ और चुपचाप सह लेने की संस्कृति ने उनके हौसले को चुनौती दी है। अब वे खामोश नहीं रहना चाहतीं। वे कहती हैं-है कि हमें उड़ना है, डरना नहीं। उनकी मांग है-रोशनी, सुरक्षा और सम्मान। अब समय आ गया है जब कटिहार को बेटियों के लिए निडर शहर बनाया जाए, जहां हर सपना सच हो सके। कटिहार की बेटियां आज सिर्फ किताबों तक सीमित नहीं हैं। वे स्कूलों के परीक्षा परिणामों में टॉप कर रही है। मेडिकल-इंजीनियरिंग की राह पर निकल चुकी हैं और हर क्षेत्र में शहर का नाम रोशन ...