भागलपुर, जून 10 -- प्रस्तुति: ओमप्रकाश अम्बुज, मोना कश्यप गंगा किनारे बसे इन चेहरों की आंखों में सपने हैं, पर पैरों के नीचे ज़मीन नहीं। सदियों से कटिहार के कुरसेला, समेली, बरारी, फलका, कोढ़ा, मनिहारी, मनसाही और अमदाबाद में बसे गंगोता समाज ने नदी से जीवन पाया, पर अब वही नदी उनकी ज़मीन, रोज़गार और पहचान बहा ले गई। विकास की हर योजना इन तक आते-आते थम जाती है। न शौचालय, न पानी, न मकान-सिर्फ इंतज़ार और उपेक्षा का बोझ है। इनकी आवाज़ कभी चुनावी वादों में गूंजती है, तो कभी सरकारी कागज़ों में खो जाती है। अब ये समाज अधिकार और सम्मान की मांग कर रहा है-एक स्थायी पहचान की तलाश में। कटिहार जिले की गंगा और कोसी नदियों के किनारे बसे प्रखंड-कुरसेला, समेली, बरारी, फलका, कोढ़ा, मनसाही, मनिहारी और अमदाबाद-में गंगोता या गंगोत्री जाति के करीब दो लाख लोग आज भी ह...
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