औरंगाबाद, अप्रैल 28 -- जिले के प्रारंभिक विद्यालयों में बच्चों को पौष्टिक भोजन कराकर सेहतमंद बनाने वाली रसोइया बदहाल है। नाममात्र के मानदेय की वजह से उनकी खुद की रसोई का चूल्हा बमुश्किल जलता है। रसोइयों को बच्चों की पढ़ाई के लिए कलम, कॉपी खरीदने में भी कठिनाई होती है। बीमारी या हादसे की स्थिति में कर्ज लेना पड़ता है। इसका सूद भरने में परेशानी होती है। रसोईया कहती हैं कि 1650 रुपए महीने मानदेय निर्धारित है, वह भी साल भर में सिर्फ 10 माह मिलता है। महंगाई के इस दौर में इतनी कम राशि से लोग महीने भर चाय पानी भी नहीं कर सकते हैं। फिर भी हम लोगों का पारिवारिक भरण पोषण कैसे होता है, यह सरकार को सोचना चाहिए। रसोईया रीता देवी, शीला देवी, मनवा देवी, कलावती देवी, सुनीता देवी, शांति देवी, सरिता देवी, लक्ष्मी देवी, मीना देवी आदि कहती हैं कि मानदेय बढ़ा...
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