उरई, फरवरी 15 -- उरई। शाम को जिस वक्त खाली हाथ घर जाता हूं मैं, मुस्कुरा देते हैं बच्चे और मर जाता हूं मैं। मशहूर शायर राजेश रेड्डी ने यह शेर किसी मजदूर की मजबूरियां महसूस करके ही लिखा होगा। शहर के श्रमिक अड्डे पर यह 'शेर' जगह-जगह झलकता है। इन अड्डों पर न साया है न पानी और टायलेट के इंतजाम। काम मिलने की गारंटी भी नहीं। समाज और सरकार दोनों से ही इन्हें उपेक्षा ही मिलती है। खुले आसमान के नीचे सर्दी में सड़क के किनारे खड़े दिहाड़ी मजदूर परेशान हैं कि आज भी कोई काम मिलेगा या नहीं। मिल गया तो परिवार खुश हो जाएगा नहीं तो फिर आधे पेट का ही खाना मिलेगा। काम की तलाश में राठ रोड पर खड़े मजदूर बाबू लाल ने पूछते ही कहा कि क्या करोगे बाबू हमारी समस्या जानकर। कुछ बदलने वाला नहीं है। कई साल से ऐसे ही खुले में काम की तलाश में खड़े होते हैं। कहीं कोई छाया नहीं...