उरई, फरवरी 19 -- उरई। पान अब सिर्फ रस्मों तक ही सीमित रह गया है। गुटखे के बढ़ते चलन से इसका रुआब कम हो गया है। एक समय पानदान घरों की शान होता था लेकिन अब एक-दो घरों में ही दिखाई पड़ता है। लागत की अपेक्षा पैदावर कम होने से पान की खेती करने वाले भी मुंह मोड़ रहे है। आपके अपने अखबार 'हिन्दुस्तान से पान दुकानदारों ने अपनी पीड़ा बताई। बोले-अब इसे बचाने की पहल की जाए। गुटखे के चलन ने पान कारोबार की कमर तोड़ दी है। अब पान सिर्फ रस्मों और रिवाजों तक ही सीमित रह गया है। कभी इसकी शान ही अलग थी और शौकीनों की भी कमी नहीं थी। यह बात कहते-कहते पान कारोबारी सुशील पुरानी यादों में खो जाते हैं और शायर बशीर बद्र का शेर सुनाते हैं कि सुना के कोई कहानी हमें सुलाती थी, दुआओं जैसी बड़े पान-दान की खुशबू। आपके अपने अखबार 'हिन्दुस्तान से पान कारोबारियों ने अपनी समस्याओ...
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