उन्नाव, फरवरी 17 -- रंगमंच सिर्फ एक कला नहीं, बल्कि समाज को आईना दिखाने का माध्यम है। वर्षों तक अपने किरदारों से मंच पर जान डालने वाले रंगकर्मी आज एक बड़े संकट से गुजर रहे हैं। कभी जिनके अभिनय से सभागार तालियों से गूंजता था, वे आज मंच के अभाव में खामोश हैं। निराला प्रेक्षागृह जो कभी इनकी कला का गवाह था, अब इनसे दूर होता जा रहा है। इस विधा को पनाह की जरुरत है। पूर्वाभ्यास के लिए रंगकर्मी घरों में या फिर गेस्ट हाउस आदि में जुटने को मजबूर हो रहे हैं। उपेक्षाओं का सामना कर रहे रंगकर्मियों को जिम्मेदारों की लापरवाही पर भी खासा मलाल है। रंगकर्मियों ने आपके अपने अखबार 'हिन्दुस्तानसे अपनी पीड़ा साझा की। सभी का एक सुर में कहना है कि उन्हें फिर से उनका निराला प्रेक्षागृह मंच अभ्यास के लिए वापस मिले ताकि नाटक, संवाद और अभिनय की वह दुनिया दोबारा जीवंत ...