आजमगढ़, फरवरी 16 -- नवाचार का मतलब मस्ती की पाठशाला। डांस, कविता और खेलों के जरिए बच्चों को पाठ्यक्रम याद कराना, स्वच्छता का संदेश देना। नवाचार को लेकर शिक्षक उत्साहित हैं, लेकिन स्कूलों में नामांकन कराने वाले दिव्यांग बच्चों को नई तकनीक से न पढ़ा पाने का उन्हें मलाल भी है। वे कहते हैं कि घर-परिवार के लोगों की लापरवाही उन पर भारी पड़ रही। कहीं दिव्यांगों को पढ़ाने के लिए तैनात स्पेशल टीचर लापरवाह हैं। उन्हें चलने-फिरने में अक्षम बच्चों के घर जाकर पढ़ाना है, लेकिन ऐसा नहीं हो पा रहा है। पल्हनी बीआरसी के सभागार में 'हिन्दुस्तान के साथ बातचीत में नवाचारी शिक्षकों ने अपनी समस्याएं साझा कीं। शिक्षिका ममता चौबे ने बताया कि हर युग में नवाचार का रूप बदलता रहा है। पहले आश्रम पद्धति में कुछ और रूप था। फिर गुलाम भारत में लार्ड मैकाले की पद्धति आई। इ...