नई दिल्ली, नवम्बर 4 -- पूजा-पाठ, साधना, तपस्या आदि कर्मकांड के लिए उपयुक्त आसन पर बैठने का विशेष महत्व होता है। ब्रह्मांड पुराण तंत्रसार में कहा गया है कि इन कर्मकांडों के लिए भूमि पर बैठने से दुख, पत्थर पर बैठने से रोग, पत्तों पर बैठने से चित्तभ्रम, लकड़ी पर बैठने से दुर्भाग्य, घास-फूस पर बैठने से अपयश, कपड़े पर बैठने से तपस्या में हानि और बांस पर बैठने से दरिद्रता आती है। उल्लेखनीय है कि बिना आसन बिछाए धार्मिक कर्मकांड करने के लिए बैठने से उसमें सिद्धि अर्थात पूर्ण सफलता नहीं मिलती, ऐसे संकेत हमारे धर्मशास्त्र में दिए गए हैं। प्राचीन काल में ऋषि-मुनि काले हिरण के चर्म, कुशासन, गोबर का चौका, चीता या बाघ के चर्म, लाल कंबल आदि का आसन उपयोग में लेते थे। इसके पीछे मान्यता यह थी कि काले हिरण के चर्म से निर्मित आसन का प्रयोग करने से ज्ञान की स...