प्रयागराज, दिसम्बर 6 -- इलाहाबाद हाईकोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि बार कौंसिल की अनुशासनात्मक कार्यवाही में किसी वकील का बरी या दोषमुक्त होना अपने आप में उसके खिलाफ दर्ज किसी वैध आपराधिक मामले को समाप्त करने का आधार नहीं बन सकता। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि आपराधिक कार्यवाही और अनुशासनात्मक कार्यवाही अलग-अलग प्रकृति की होती हैं और दोनों एकसाथ चल सकती हैं क्योंकि उनके उद्देश्य प्रक्रिया और प्रमाण के मानक भिन्न होते हैं। यह आदेश न्यायमूर्ति जय प्रकाश तिवारी ने गाजियाबाद के एडवोकेट योगेश कुमार भेटवाल की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया है। भेंटवाल ने याचिका दाखिल कर गाजियाबाद के एसीजेएम अदालत से जारी सम्मन आदेश को चुनौती दी थी। यह आदेश उनके खिलाफ आईपीसी की धारा 420 के तहत दर्ज एक मामले में जारी किया गया है। मामले के तथ्यों के अनुसार अगस्त...
Click here to read full article from source
To read the full article or to get the complete feed from this publication, please
Contact Us.