सीवान, सितम्बर 5 -- सीवान, हिन्दुस्तान संवाददाता। बदलते परिवेश में समय के बहाव ने शिक्षा व शिक्षक दोनों को प्रभावित किया है। गुरुकुल परंपरा खत्म हुई तो विद्यालय व महाविद्यालय ने आकार लिया। आचार्य की जगह शिक्षक व गुरु जी से हमारा साक्षात्कार हुआ। विद्यालय व महाविद्यालय तो आज भी हैं लेकिन अब शिक्षक व गुरु जी की जगह सर, ले लिए। फिर क्यों न हो शिक्षा व शिक्षकों में बदलाव। कुल मिलाकर कह सकते हैं कि तब व अब के शिक्षक, उनकी पढ़ाने की शैली, उनका नाम, उनकी पहचान-शख्सियत और सबसे बढ़कर अपने छात्रों को पढ़ाने के प्रति उनका सर्वस्व समर्पण ही इनके बीच के अंतर को बढ़ा रहा है। अपने बच्चों को परिवार का आदर्श बेटा, आदर्श शिक्षक, आदर्श नागरिक बनाने में जुटे गुरु जी के जिम्मे अब पढ़ने-पढ़ाने के अलावा भी कई कार्य हैं। मसलन, चुनाव, जनगणना, सर्वेक्षण, सरकारी यो...