लखनऊ, जुलाई 9 -- कलेक्ट्रेट कोषागार को पता ही नहीं कि स्वर्ग सिधार चुके पेंशनधारक की मौत कब हुई। बेटा सत्यापन में किराए पर एक मिलते जुलते व्यक्ति को लाकर जीवित होने का सत्यापन कराता रहा। अब फर्जीवाड़ा सामने आने के बाद उसी आरोपी बेटे की बात कोषागार मानेगा। वजह यह है कि कोषागार के पास कोई रिकॉर्ड ही नहीं कि असल में पेंशनधारक की मृत्यु कब हुई। नगर निगम से मदद मांगी तो उसने भी पल्ला झाड़ लिया। नगर निगम ने जो कोषागार को रिपोर्ट भेजी है उसके अनुसार जिस तारीख में पेंशनधारक की मृत्यु बताई गई, उनका नाम रिकॉर्ड में नहीं मिला। पेंशन धारक के परिवारीजनों से पूछताछ में उन लोगों ने मृत्यु का दिन और साल बताया था। इसी आधार पर कोषागार की ओर से नगर निगम को पत्र लिखकर जानकारी मांगी गई। नगर निगम ने अपने स्तर से जांच की। उसके दिए जवाब में अनुसार संबंधित तारीख ...