मथुरा, नवम्बर 20 -- प्रेम भी एक बंधन है, लेकिन यह स्वीकार किया हुआ बंधन है न कि जबरन लादा हुआ बंधन। इसलिए प्रेम का बंधन अनूठा बंधन माना गया है। स्वयं भगवान भी इस बंधन को स्वीकार करते हैं, जब यशोदा मैया ने लाला को बांधना चाहा तो वे बंध गए, प्रेम का यह बंधन परम आनंद प्रदान करता है। उक्त उद्गार प्रख्यात श्रीमद्भागवत प्रवक्ता रमेश भाई ओझा ने गुरुवार को माताजी गोशाला में कथा सुनाते हुए व्यासपीठ से व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि श्रीराधाजी का नाम सुनना ठाकुरजी को अत्यंत प्रिय है, इसलिए राधा नाम सुनने के लोभ से कन्हैया पीछे पीछे चले आते हैं। सामान्य दृष्टि से देखने पर लोग कहते हैं कि भागवत कथा में राधाजी दिखती नहीं हैं, क्योंकि राधा गोपी हैं, गोपन हैं, गोपनशीला हैं, छुपी हुई हैं। श्रीराधा न होतीं तो भागवत की रचना ही न हुई होती। राधाजी शुकदेवजी की द...