आचार्य महाप्रज्ञ, फरवरी 18 -- Pravchan: आंख साफ है तो दुनिया साफ है। आंख में धुंधलापन है तो सारी दुनिया धुंधली हो जाती है। तर्कशास्त्र में 'द्विचंद्रबोध' की बात आती है। चांद है तो एक, किंतु दृष्टि दोष के कारण वह दो दिखाई देता है। पीलिया के रोगी को सारी सृष्टि पीली-पीली दिखाई देती है। दृष्टि पर ही दृष्टि का बोध निर्भर है और साथ-साथ सृष्टि का निर्माण भी बहुत कुछ उस पर ही निर्भर है। जीवन-निर्माण में सबसे बड़ी बाधा है- दृष्टिकोण का विपर्यय। जीवन-निर्माण का सबसे बड़ा रहस्य-सूत्र है-दृष्टिकोण का निर्माण। प्रसिद्ध कहावत है- 'जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि।' पहले हम दृष्टि को बदलने की बात करें। सृष्टि को बदलने की बात पहले न करें। यदि दृष्टि बदलती है तो प्रयोजन पूरा हो जाता है। सृष्टि अपने आप बदल जाती है। उसके लिए इतनी चिंता करने की आवश्यकता नहीं है। सबस...