गंगापार, जुलाई 29 -- बारा, हिन्दुस्तान संवाद। सावन माह के साथ ही गांव के पीपल और नीम की डालों पर पड़ने वाले झूले एवं सावन की कजरी की मधुर ध्वनि विलुप्त होती जा रही है। सावन माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को नाग पंचमी के दिन नाग देवता की पूजा की परंपरा तो बरकरार है किन्तु झूले की परंपरा विलुप्त होती जा रही है। गांवों में ससुराल से नई नवेली दुल्हनें नाग पंचमी यानी कि गुड़िया का त्योहार मायके में मनाने के लिए बेसब्री से इंतजार करतीं रहती थीं। गांव की गलियों तक में बड़े बड़े पटरों को रस्सी के सहारे बांधकर झूला पड़ता था। दोनों ओर से युवक खुंभ लगाते थे और युवतियां कजरी गाती हुई झूलती थी। इस वर्ष न तो झूले दिखाई पड़े न ही झूलने वाले। कहीं कहीं छोटे छोटे बच्चे ही झूलते रहे। हुई नागदेव की पूजा इस वर्ष मंगलवार को नागपंचमी का त्योहार मनाया जा रहा ह...