नई दिल्ली, मई 19 -- नई दिल्ली। विशेष संवाददाता पुलिस की घटिया और दोषपूर्ण जांच के चलते सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को 3 साल की मासूम के साथ दुष्कर्म के बाद उसकी हत्या करने के जुर्म में फांसी की सजा पाए व्यक्ति को बरी कर दिया। शीर्ष अदालत ने फैसले में कहा है कि 'कथित अपराध के बाद आरोपी द्वारा दिए गए बयान कि वह 'तनावग्रस्त था को गलत तरीके से न्यायेतर स्वीकारोक्ति मान लिया गया, जबकि इस तरह के स्वीकारोक्ति स्वाभाविक रूप कमजोर माना जाता है। न्यायिक स्वीकारोक्ति का मतलब यह होता है कि आपराधिक मामले में न्यायिक कार्यवाही से बाहर किसी के सामने अपराध को स्वीकार करना। जस्टिस विक्रम नाथ, संजय करोल और संदीप मेहता की पीठ कहा है कि इस तरह की स्वीकारोक्ति हमेशा कमजोर होती है और इसकी पुष्टि की जानी चाहिए। पीठ ने कहा है कि इस मामले में जिस गवाह से आरोपी ने कथि...