सीतापुर, अक्टूबर 3 -- दशहरे के मौके पर रामलीला के मंचन का समापन होता है। इसके साथ ही सीतापुरमें रावण, मेघनाद और कुंभकरण के पुतला दहन की सदियों पुरानी परंपरा आज भी धूमधाम से निभाई जाती है। यह त्योहार भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है जो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। इस परंपरा को जीवित रखने में सबसे बड़ा योगदान उन गुमनाम कारीगरों का है जो हर साल अपनी कला और मेहनत से इन विशाल पुतलों को आकार देते हैं। शहर के दुर्गापुरवा मोहल्ले में कई ऐसे परिवार हैं जिन्हें पुतला बनाने का काम विरासत में मिला है। लेकिन बरसों से इस काम को करते आ रहे इन कारीगरों के सामने अब परिवार के भरण-पोषण का गंभीर संकट खड़ा हो गया है, जिसके चलते उनका अपनी पारंपरिक कला से मोहभंग होता जा रहा है। इतना ही नहीं इन कारीगरों का कहना है कि इस कला को बचाए रखने के लिए ...