पूर्णिया, जुलाई 10 -- टेटगामा, धीरज। अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी का आजादी से पहले ही रानीपतरा की धरती पर पदार्पण हुआ था। संत कवि नरसी मेहता द्वारा रचित वैष्णव जन तो तेने कहिये पीर पराई जानी रे, यह बापू का प्रिय भजन था। बापू ने जिस धरती पर 1925 में कदम रखा ठीक सौ साल बाद वहां अहिंसा ने पराकाष्ठा की सभी हदें पार कर दी। एक परिवार की पीड़ा को किसी ने नहीं समझा। घंटों हो हंगामा होता रहा। एक-दो नहीं परिवार के पांच लोगों के साथ मारपीट के बाद जिंदा आग के हवाले कर दिया गया। मगर किसी ने पीड़ितों की पीड़ा को महसूस नहीं किया। बचाने की बात तो दूर आसपास के लोगों ने परिवार के मर्म को समझकर पुलिस तक को इत्तला करना मुनासिब नहीं समझा। गांव के ही 150 से 200 लोगों ने घेरकर परिवार को मार डाला। आज बापू होते तो उनके मुंह से एक बार फिर निकलता हे राम। बुधवार क...
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