शामली, अक्टूबर 19 -- रविवार को शहर के जैन धर्मशाला में श्री 108 विव्रत सागर मुनिराज ने अपने प्रवचन में जियो और जीने दो के जैन सिद्धांत की गहन व्याख्या करते हुए कहा कि स्व-उपकार ही सच्चे परोपकार की नींव है। उन्होंने कहा कि भगवान महावीर स्वामी का अंतिम उपदेश जियो और जीने दो केवल करुणा का संदेश नहीं, बल्कि आत्म कल्याण का मार्ग है। जब व्यक्ति अपनी आत्मा को पहचानता है, तभी वह सच्चा परोपकारी बनता है। उन्होंने कहा कि "दूसरों को पीड़ा देने से अंततः स्वयं को पीड़ा मिलती है, क्योंकि यह संसार एक प्रतिध्वनि के समान है कृ जो हम देते हैं, वही लौटकर हमारे पास आता है। मुनिश्री ने बताया कि जैन दर्शन में स्व-कल्याण और परोपकार दोनों का संतुलन आवश्यक है। अन्य दर्शन या तो केवल स्वार्थ की बात करते हैं या केवल करुणा की, परंतु जैन दर्शन आत्म-करुणा के माध्यम से समग...