सीवान, अक्टूबर 17 -- सीवान, कार्यालय संवाददाता। भारतीय लोकतंत्र की सबसे बड़ी चुनौती बन चुका है परिवारवाद। आज राजनीति, समाज और संस्थानों में योग्यता और मेहनत की जगह वंश और पहचान को प्राथमिकता दी जा रही है। यह प्रवृत्ति न केवल लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए खतरनाक है, बल्कि आम नागरिकों के मनोबल को भी कमजोर करती है। राजनीति में परिवारवाद का असर सबसे स्पष्ट रूप से दिखता है। कई दलों में टिकट वितरण से लेकर संगठनात्मक पदों तक का निर्णय कुछ परिवारों की सीमाओं में सिमट गया है। इससे कार्यकर्ताओं के बीच निराशा फैलती है, क्योंकि योग्य लोग मेहनत के बावजूद आगे नहीं बढ़ पाते। लोकतंत्र का मूल सिद्धांत समान अवसर का अधिकार है, लेकिन परिवारवाद इस नींव को धीरे-धीरे खोखला कर रहा है। परिवारवाद का प्रभाव केवल राजनीति तक सीमित नहीं है। व्यापार, शिक्षा, सामाजिक संगठन...