नई दिल्ली, जुलाई 9 -- सिर्फ इसलिए कि कोई पुरुष अपनी पत्नी पर व्यभिचार (विवाहेत्तर संबंध) का संदेह करता है, उनके नाबालिग बच्चे की डीएनए जांच का आधार नहीं बन सकता। पति की तरफ से बच्चे के जैविक पिता का पता लगाने की मांग से जुड़े मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ ने यह टिप्पणी की। इसके साथ ही हाईकोर्ट ने नाबालिग लड़के की डीएनए जांच का निर्देश देने वाले एक पारिवारिक अदालत के आदेश को रद्द कर दिया। न्यायमूर्ति आरएम जोशी ने कहा कि ऐसी आनुवांशिक जांच केवल आसाधारण मामलों में कराई जाती है। एक जुलाई को दिए आदेश में न्यायमूर्ति जोशी ने कहा कि केवल इसलिए कि कोई पुरुष व्यभिचार के आधार पर तलाक का दावा कर रहा है, यह अपने आप में ऐसा विशिष्ट मामला नहीं बनता, जिसमें डीएनए जांच का आदेश दिया जाए। इस आदेश की प्रति बुधवार को प्राप्त हुई। हाईकोर्ट का आदेश उ...
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