पीलीभीत, जून 25 -- लोकतंत्र था और हर कोई अपनी बात को कह सकता था। पर अचानक क्या हुआ कि आवाज उठाना बगावत माना गया। तो हमनें भी ठान लिया कि जो सच कहना अगर बगावत है तो हम बागी हैं। आपात काल के अठारह महीना देश ने वो दौर देखा है कि बस.. तानाशाही और कुछ नहीं। आवास विकास कॉलोनी निवासी मशहूर और वरिष्ठ अधिवक्ता अशोक कुमार शमसा ने बताया कि 25 जून 1975 के बाद अचानक देश में मौलिक अधिकारों का दमन कर कर दिया गया। मैं भी समाजवाद और नैतिकता व प्रजातांत्रित मूल्यों को लेकर सजग रहा तो हमेशा सही बात को उठाता था। आपात काल के दौरान हम अपने फार्म हाऊस पर गए थे। पता चला कि पुलिस आई है। वह भाई को ले गई। इसके बाद मैं वक्त की नजाकत को समझ गया और डेढ़ माह तक अंदरखाने रह कर काम किया। पर चूंकि पकड़ा ही जाना था। रेलवे स्टेशन पर दिल्ली जाने के लिए आया तो किसी ने मुखबिरी...