नई दिल्ली, जून 25 -- 84 साल के अब्दुल रज्जाक के लिए आज भी हथौड़े की चोट, बारात का शोर या कंट्र्क्शन का शोर दहशत की वजह बन जाता है। उनका परिवार उन्हें तुरंत दिलासा देता है कि आपातकाल को 50 साल हो चुके हैं, अब कोई नसबंदी के लिए नहीं आएगा। लेकिन पुरानी दिल्ली के तुर्कमान गेट की गलियों में बसी उन भयावह यादों को भूलना आसान नहीं।तुर्कमान गेट में दहशत का आलम जून 1975 में आपातकाल लागू होने के बाद तुर्कमान गेट की तंग गलियां खौफ से कांप उठी थीं। संजय गांधी के जनसंख्या नियंत्रण कार्यक्रम के तहत सरकार ने इस इलाके को नसबंदी अभियान का केंद्र बनाया। डिस्पेंसरी, स्कूल और नगर निगम के हॉल तक में नसबंदी कैंप लगाए गए। गरीबों को पहले खाने और छत का लालच देकर, फिर जबरदस्ती इन कैंपों में लाया गया। चांदनी चौक के पास फर्नीचर बेचने वाले रज्जाक बताते हैं कि पहले गरी...
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