गोंडा, अप्रैल 4 -- धानेपुर, संवाददाता। पंडित पुरवा में चल रही श्रीमद्भागवत कथा में तीसरे दिवस कथा व्यास आनंद महाराज ने ध्रुव और प्रहलाद के प्रसंग का वर्णन करते हुए कहा कि भजन करने के लिए वृद्धावस्था की प्रतीक्षा नहीं करना चाहिए अपितु बाल्यकाल से भजन की आदत बना लेनी चाहिए । जिस प्रकार से ध्रुव अपनी सौतेली माता के दुर्वचनों से आहत होकर अपनी माता सुनीति के पास आकर रोने लगते हैं पर उनकी माता सुनीति ने उनके मन में किसी प्रकार का अपनी सौतेली मां प्रति दुर्भाव न बने , इसलिए उन्होंने अपने पुत्र को तपस्या के लिए प्रेरित कर दिया, अपनी माता के द्वारा प्रेरित होकर पांच वर्ष के अबोध बालक के मन परमात्मा को पाने की ऐसी उत्कंठा जगी कि घर द्वार छोड़ कर तपस्या के लिए जंगल के लिए निकल पड़े और मात्र छ: महीने में भगवान का दर्शन प्राप्त किया।जिस प्रकार से ध्रु...
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