नई दिल्ली, अगस्त 6 -- इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक आदेश में कहा है कि जब तक धोखाधड़ी साबित न हो जाए, किसी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। कोर्ट ने कहा कि कोई प्रमाणपत्र विभागीय गलती से जारी हो और उसमें लाभार्थी की कोई भूमिका न हो तो इसे अनियमितता ही कहेंगे। कोर्ट ने कहा कि याची के बाबा (पितामह) स्वतंत्रता सेनानी थे। जब याची 16 साल का था तो स्वतंत्रता सेनानी आश्रित प्रमाणपत्र जारी किया गया था लेकिन रजिस्टर में दर्ज नहीं किया गया। बाद में 31 साल की आयु में दोबारा प्रमाणपत्र जारी किया गया। उसे दोहरे प्रमाणपत्र व फ्राड करने के आरोप में बर्खास्त कर दिया गया, जिसे याचिका में चुनौती दी गई थी। कोर्ट ने कहा कि प्रमाणपत्र जारी कराने में याची की कोई भूमिका नहीं है। प्रमाणपत्र धोखाधड़ी से हासिल किया है, इसे साबित नहीं किया गया है। ऐसे में विभागीय गलती के लिए...