शामली, जुलाई 22 -- श्री दिगंबर जैन साधु सेवा समिति द्वारा आयोजित चतुर्मास के दौरान श्री 108 विव्रत सागर महाराज ने ज्ञान की अमृत वर्षा करते हुए कहां कि हर जीव धर्मानुसार जीना चाहता है, पर वास्तव में धर्म में जीवन जीना अत्यंत दुर्लभ है। धर्म वस्तु का स्वभाव है। शुद्ध आत्मा केवल आत्मा की स्थिति में ही संभव होता है। पूजा, व्रत, भक्ति जैसे कर्तव्य धर्म की ओर जाने का साधन हैं। धर्म एक मंजिल है, जब आत्मा अपने स्वभाव को प्राप्त कर लेती है। कहा कि जैसे शिक्षा में क्रम होता है, वैसे ही धर्म मार्ग पर भी क्रम है। पहले मंदिर जाना, अभिषेक, चढ़ावा, व्रत इत्यादि सीखाए जाते हैं। फिर धीरे-धीरे श्रावक के छह कर्तव्यों की ओर अग्रसर किया जाता है। देव पूजा, गुरु प्रास्ति, स्वाध्याय, संयम, तप और दान। किंतु इस मार्ग पर आगे बढ़ने से पहले सच्चे देव, शास्त्र और गुरु प...