शामली, सितम्बर 21 -- शामली। जैन धर्मशाला में मुनिश्री 108 विव्रत सागर ने प्रवचन करते हुए कहा कि संसार का प्रत्येक जीव भयभीत रहता है। सम्यग्दृष्टि जीव संसारिक भोगों से दूर रहना चाहता है, क्योंकि उसे भय रहता है कि कहीं वह अपने शुद्ध आत्मस्वरूप को न भूल जाए। वहीं मिथ्यादृष्टि जीव को डर रहता है कि कहीं उसके भोग छिन न जाएं। उन्होंने कहा कि मिथ्यादृष्टि धर्म-ध्यान और चारित्र का पालन भी इसीलिए करता है कि उसे इस लोक और परलोक में सुख प्राप्त हो सके। लेकिन धर्म का वास्तविक उद्देश्य न तो इस लोक को सुधारना है और न ही परलोक को। धर्म का असली प्रयोजन आत्मा को पहचानना और उसे शुद्ध करना है। मुनिश्री ने बीमा इंश्योरेंस का उदाहरण देते हुए कहा कि लोग मोबाइल, बाइक, मकान, स्वास्थ्य और शरीर का बीमा तो कराते हैं, लेकिन आत्मा के सुख का बीमा कोई नहीं करता। लोग क्ष...