शामली, अक्टूबर 12 -- शहर के जैन धर्मशाला में श्री 108 विव्रत सागर मुनिराज ने कहा कि जो धर्मात्मा जीव होता है, वह उन भोगों में लिप्त नहीं होता जो पापात्मा जीव को आकर्षित करते हैं। उन्होंने कहा कि सच्चा धर्मात्मा अपनी आत्मा के स्वभाव के अनुरूप जीवन जीता है और सांसारिक सुखों से विमुख रहता है। मुनिराज ने अपने प्रवचन में सौभाग्य और स्वभाव विषय पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए कहा कि सच्चा सौभाग्य किसी और से तुलना करके प्राप्त नहीं किया जा सकता, बल्कि यह अपने स्वयं के स्वभाव को जगाने से संबंधित है। उन्होंने पुण्य को पानी और निश्चय को दूध के समान बताया। जो व्यक्ति को धर्म के मार्ग पर अग्रसर होकर आत्मा की वास्तविक पहचान तक पहुँचने में मदद करता है। उन्होंने कहा कि धार्मिक कार्य जैसे भिक्षुओं को भोजन देना, शास्त्रों का पाठ करना या आत्मचिंतन कृ आत्मा ...