नई दिल्ली, अगस्त 25 -- अभिव्यक्ति की आजादी मनुष्य के मौलिक अधिकारों का अभिन्न हिस्सा है। इस आजादी के बिना एक लोकतांत्रिक और मानवीय समाज की कल्पना भी नहीं की जा सकती। लेकिन यह आजादी कहां तक और कितनी होनी चाहिए, यह यक्ष प्रश्न हमेशा से समाज में बहस का मुद्दा रहा है। अलग-अलग विचारधाराओं में इस आजादी को अलग-अलग तरीके से परिभाषित किया गया है, फिर भी यह बहस अनवरत जारी है। अभी हाल ही में एक मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा। कोर्ट ने इस मामले का गंभीरता से लिया है। यह मामला दिव्यांगों के बारे में असंवेदनशील टिप्पणी को लेकर है। देश के दो कॉमेडियनों ने अपने कार्यक्रम में दिव्यांगों का मजाक उड़ाया। यह मजाक सार्वजनिक होने के बाद एक संगठन की ओर से सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई। सुनवाई के दौरान पीठ ने कॉमेडियन को माफी मांगने का आदेश देते जो कहा, वह ...
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