नई दिल्ली, अक्टूबर 17 -- एक वक्त था, जब दीपावली का मतलब था, दीये। खूब सारे। जगमग करते हुए। उन दीयों से हम सबकी कोई-न-कोई यादें जुड़ी हुई हैं। दीपावली की शाम में उन्हें जलाने की तैयारियां सुबह से ही शुरू हो जाया करती थीं। उन्हें पानी में कुछ देर डुबोकर रखा जाता था, फिर छाया में सुखाया जाता था। बाती तैयारी की जाती थी। घर-आंगन बहुत बड़ा हुआ, तो दीयों के साथ किरोसिन तेल वाली डिबरियों को जलाने की भी तैयारी की जाती थी। बदलते समय के साथ सब कुछ बदला है। दीपावली का त्योहार भी और घर को रोशन करने का तौर-तरीका भी। अब परंपरा के नाम पर कुछ दीये जला दिए जाते हैं, पर घर को असल में रोशन करने की जिम्मेदारी इलेक्ट्रिक लाइट्स के हिस्से आ गई है। अब बाजार में इन लाइट्स के इतने विकल्प हैं कि आप खरीदारी करने जाएं, तो तय है कि निर्णय लेना मुश्किल हो जाएगा। ऐसे मे...
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