सहारनपुर, सितम्बर 5 -- दस दिवसीय दशलक्षण महामांगलिक अनुष्ठान के नवें दिवस "उत्तम आकिंचन्य धर्म" की पूजा बड़े श्रद्धाभाव से संपन्न हुई। प्रातःकाल की मंगल बेला में जैन बाग स्थित अतिशयकारी मंदिर में जगत के समस्त प्राणियों के सुख-शांति और कल्याण के लिए अभिषेक एवं शांतिधारा की गई। वीरोदय तीर्थ मंडपम् में विमर्श सागर महाराज ने मंगल देशना देते हुए कहा कि संयम, तप और त्याग के मार्ग पर बढ़ते हुए जब साधक यह अनुभव करता है कि संसार का कोई पदार्थ मेरा नहीं है, तब वह अंतरंग और बहिरंग परिग्रह दोनों का त्याग कर आत्मा में उत्तम आकिंचन्य धर्म को प्रकट करता है। यह महान त्याग केवल दिगंबर महामुनिराजों को ही होता है, जिससे आत्मा को असीम सुख की प्राप्ति होती है। उन्होंने कहा कि धन, वैभव और प्रतिष्ठा के अंध प्रतिस्पर्धा में मनुष्य भटकता रहता है, किंतु यह सब क्षण...