दरभंगा, जुलाई 20 -- बिरौल। प्रखंड की पश्चिमी सीमा पर स्थित देवकुली धाम में विराजित बाबा द्रवेश्वर नाथ त्रेता युगीन अंकुरित महादेव की प्रसिद्धि दूर-दूर तक फैली हुई है। दंत कथाओं के अनुसार पांडव अज्ञातवास के दौरान यहां पूजा-अर्चना करने आते थे। यहां से दो किलोमीटर पूर्व फुलहारा में किचका चौर है, जहां कीचक का वध हुआ था। वहीं पर आज भी खूणिमा वाहा मौजूद है। साथ ही कुछ ही दूरी पर मौजूद रुक्मिणी डीह भी इसका जीवंत प्रमाण है। ग्रामीण व शिक्षाविन्द डॉ. राकेश रौशन बताते हैं कि दर्वेश्वर नाथ मंदिर में महादेव युगल रूप में विराजमान हैं। गौरी और शंकर की स्पष्ट आकृति शिवलिंग में दिखाई दे रही है जो संपूर्ण भारत में दो-तीन जगह ही है। घनघोर जंगल के कारण इन्हें वन्तरी महादेव के नाम से भी जाना जाता है। साथ ही ये मनोकामना लिंग के नाम से भी विख्यात हैं। बाबा द्र...