गिरडीह, मई 11 -- गिरिडीह। श्री कबीर ज्ञान मंदिर की सद्गुरु मां ज्ञान ने कहा कि ष्णा के चंगुल में फंसे व्यक्ति के पास सब कुछ होते हुए भी कुछ नहीं होता है। कहा कि भोगों को हमने नहीं भोगा, भोगों ने हमें ही भोग लिया। तपस्या हमने नहीं की, बल्कि हम खुद तप गए। काल (समय) कहीं नहीं गया, बल्कि हम स्वयं चले गए। फिर भी मेरी और-और पाने की तृष्णा बूढ़ी नहीं हुई, बल्कि हम स्वयं बूढ़े हो गए। मां ज्ञान ने कहा कि न माया मरती है, न मन मरता है। शरीर ही बार-बार मर-मरकर चला जाता है। यह आशा और तृष्णा ही तो दुखों एवं आवागमन का कारण है। तृष्णाओं का कोई अन्त नहीं है। अनंत कामनाएं मानव-मन को पागल-बेचैन बनाए रखती है। इस तृष्णा के कारण ही तो धन-धान्य के बीच भी मानव खिन्न व व्याकुल बना रहता है।
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